भारतीय संस्कृति में त्योहार और व्रत हमें आध्यात्मिक उन्नति, प्रकृति और स्वास्थ्य से जोड़ते हैं। इनमें से एक है शिव-शक्ति की आराधना का महापर्व – सावन (श्रावण) मास। यह महीना भगवान शिव और माता पार्वती की भक्ति के लिए समर्पित है, जिसे एक उत्सव की तरह मनाया जाता है। विशेषकर सावन के सोमवारों का अतुलनीय महत्व है, जब भक्त शिव-शक्ति की आराधना कर अपनी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। यह माह न केवल आध्यात्मिक, बल्कि स्वास्थ्य और प्रकृति से भी गहरा संबंध रखता है।

इस वर्ष, सावन का पवित्र महीना 11 जुलाई 2025, शुक्रवार को प्रतिपदा तिथि पूर्वाह्न 02:10 बजे शुरू होगा और 9 अगस्त 2025, शनिवार को पूर्णिमा तिथि अपराह्न 01:26 बजे समाप्त होगा। यह अवधि शिव-पार्वती की भक्ति में लीन होने का स्वर्णिम अवसर है।

सावन माह का महत्व और सोमवारी व्रत की महिमा

सावन मास भगवान शिव को समर्पित सबसे पवित्र महीनों में से एक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को भगवान शिव ने लोक कल्याण के लिए अपने कंठ में धारण कर लिया था। विष के प्रभाव को कम करने के लिए देवताओं ने उन पर जल अर्पित किया, तभी से भोलेनाथ को जल अर्पित करने की परंपरा शुरू हुई। यह घटना शिव के त्याग और करुणा का प्रतीक है, जिसने उन्हें ‘नीलकंठ’ नाम दिया।

पद्म पुराण में सावन मास की महिमा का वर्णन करते हुए कहा गया है:

“श्रावणमाहात्म्यं हि सर्वपापप्रणाशनम्।
शृण्वतां पठतां नॄणां सर्वकामप्रपूरकम्॥”

अर्थात्: “श्रावण मास का माहात्म्य सभी पापों को नष्ट करने वाला है। इसे सुनने और पढ़ने वाले मनुष्यों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।”

सावन का महीना भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन का भी प्रतीक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता पार्वती ने शिव को पति रूप में पाने के लिए सावन माह में ही कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। यही कारण है कि सावन के सोमवार अविवाहित कन्याओं द्वारा मनचाहा वर प्राप्त करने और विवाहित स्त्रियों द्वारा पति की दीर्घायु व सुखी वैवाहिक जीवन के लिए विशेष रूप से रखे जाते हैं। यह व्रत शिव-पार्वती के अटूट प्रेम और आदर्श वैवाहिक जीवन का प्रतीक है।

सोमवारी व्रत की प्रमुख मान्यताएँ

सोमवारी व्रत भक्तों की गहरी आस्था और विशिष्ट मनोकामनाओं से जुड़ा है:

  1. मनचाहे जीवनसाथी की प्राप्ति: कुंवारी कन्याएँ उत्तम वर की कामना से यह व्रत रखती हैं, ऐसी मान्यता है कि सच्चे मन से व्रत करने से उन्हें भगवान शिव जैसा आदर्श पति मिलता है।
  2. सुखद वैवाहिक जीवन: विवाहित महिलाएँ अपने पति की लंबी आयु, उत्तम स्वास्थ्य और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए यह व्रत करती हैं।
  3. रोगों से मुक्ति और उत्तम स्वास्थ्य: भगवान शिव को ‘मृत्युंजय’ भी कहा जाता है। सोमवारी व्रत शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति दिलाकर आरोग्य प्रदान करता है।
  4. धन-धान्य और समृद्धि: यह व्रत दरिद्रता का नाश कर घर में सुख-समृद्धि और धन-धान्य लाता है।
  5. मोक्ष और आध्यात्मिक उन्नति: आध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह व्रत मन को पवित्र कर मोक्ष की ओर अग्रसर करता है।

शिव पुराण में कहा गया है कि सावन मास में भगवान शिव की पूजा करने से भक्तों को विशेष फल की प्राप्ति होती है:

“श्रावणे मासि यः कश्चित्सोमवारे सदाशिवम्।
पूजयित्वा प्रयत्नेन स सर्वान्कामान् प्रलभेत॥”

अर्थात्: “जो कोई भी श्रावण मास के सोमवार को सदाशिव (भगवान शिव) की प्रयत्नपूर्वक पूजा करता है, वह सभी मनोकामनाओं को प्राप्त करता है।”

सावन के सोमवार और उनके विशेष योग

इस वर्ष सावन में पड़ने वाले सोमवारों का अपना विशेष महत्व और योग है:

  • पहला सावन सोमवार: 14 जुलाई 2025
    • कृष्ण पक्ष, संकष्टी चतुर्थी। आयुष्मान योग तदुपरान्त सौभाग्य योग।
    • अभिजीत मुहूर्त: पूर्वाह्न 11:27 बजे से अपराह्न 12:22 बजे तक।
  • दूसरा सावन सोमवार: 21 जुलाई 2025
  • कृष्ण पक्ष, कामिका एकादशी। वृद्धि योग तदुपरान्त ध्रुव योग।
  • अभिजीत मुहूर्त: पूर्वाह्न 11:28 बजे से अपराह्न 12:22 बजे तक।
  • यह दिन भगवान विष्णु के साथ शिव-पार्वती पूजन के लिए शुभ फलदायी है।
  • तीसरा सावन सोमवार: 28 जुलाई 2025
    • कृष्ण पक्ष, त्रयोदशी तिथि। परिध योग तदुपरान्त शिव योग।
    • अभिजीत मुहूर्त: पूर्वाह्न 11:29 बजे से अपराह्न 12:22 बजे तक।
  • चौथा सावन सोमवार: 04 अगस्त 2025
    • कृष्ण पक्ष, दशमी तिथि। ब्रह्म योग तदुपरान्त एन्द्र योग।
    • अभिजीत मुहूर्त: पूर्वाह्न 11:28 बजे से अपराह्न 12:22 बजे तक।

पहली और आखिरी सोमवारी का महत्व

पहली सोमवारी भगवान शिव की पूजा-अर्चना और व्रत रखने की शुरुआत का प्रतीक है। यह आध्यात्मिक विकास और शिव भक्ति की शुरुआत का प्रतीक है, जो मानसिक शांति और कल्याण की ओर ले जाती है। इस दिन शिवलिंग पर जल, दूध, शहद और पंचामृत से अभिषेक करने का विशेष महत्व है।

आखिरी सोमवारी सावन के महीने के समापन और शिव कृपा की प्राप्ति का प्रतीक है। इस दिन व्रत रखने से पूरे महीने की भक्ति का फल मिलता है। यह भगवान शिव की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। अगर आप पूरे सावन का व्रत नहीं रख पाते, तो आखिरी सोमवारी का व्रत रखकर शिव कृपा प्राप्त कर सकते हैं, जिससे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

पूजन-विधि और विधान

सोमवारी व्रत की पूजा विधि अत्यंत सरल है:

  1. सुबह का अनुष्ठान: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, स्वच्छ वस्त्र धारण करें। सबसे पहले भगवान गणेश का पूजन करें।
  2. संकल्प: हाथ में जल, अक्षत, पुष्प और एक सिक्का लेकर अपनी मनोकामना बताएं और व्रत का संकल्प लें।
  3. शिवलिंग का अभिषेक: शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय, पहले गणेश, कार्तिकेय, और अशोक सुंदरी का अभिषेक करें। शिवपुराण के अनुसार, जलाधारी में माता पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और अशोक सुंदरी का वास होता है।
  4. पंचामृत अभिषेक: पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर का मिश्रण) से अभिषेक करें, “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करते रहें। पुनः शुद्ध जल से अभिषेक करें।
  5. प्रिय वस्तुएँ अर्पित करें: भगवान शिव को प्रिय वस्तुएँ जैसे बेलपत्र, धतूरा, भांग, शमी पत्र, आक के फूल, सफेद पुष्प, चंदन, भस्म, रुद्राक्ष, मौली बांधकर ऋतुफल और पंचमेवा का भोग लगाएं। शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करें।
  6. मंत्र जाप: “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें। रुद्राक्ष की माला से जाप विशेष फलदायी होता है। माता पार्वती के लिए “ॐ उमा महेश्वराय नमः” या “ॐ गौरी शंकराय नमः” का जाप करें।
  7. कथा और आरती: पूजा के दौरान सोमवारी व्रत कथा का पाठ करें या सुनें। अंत में भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करें। अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगें और मनोकामनाएं पूर्ण करने की प्रार्थना करें।

स्वास्थ्य और अध्यात्म का संगम

सावन का महीना केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और प्रकृति से भी गहरा संबंध रखता है:

  1. मौसम और स्वास्थ्य: सावन में वर्षा ऋतु का आगमन होता है, जिससे पाचन शक्ति कमजोर होती है। हल्का और सात्विक भोजन करना लाभदायक है। व्रत के दौरान फलाहार या नियंत्रित भोजन शरीर को डिटॉक्स करने और पाचन तंत्र को आराम देने में मदद करता है।
  2. प्रकृति का पोषण: बारिश का यह महीना प्रकृति को नवजीवन देता है। चारों ओर हरियाली मन को शांति देती है। शिव पूजा में बेलपत्र, धतूरा, भांग आदि का उपयोग प्रकृति के प्रति सम्मान दर्शाता है।
  3. अध्यात्मिक उत्थान: व्रत और उपवास मन को नियंत्रित करते हैं, इंद्रियों पर नियंत्रण सिखाते हैं और आध्यात्मिक चेतना बढ़ाते हैं। पूजा-पाठ, मंत्र जाप और कथा श्रवण से मन एकाग्र होता है। धार्मिक अनुष्ठान सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं, जिससे मानसिक तनाव कम होता है और आंतरिक शांति मिलती है। व्रत रखना त्याग और समर्पण की भावना विकसित करता है, जो आत्म-कल्याण की ओर प्रेरित करता है।

सभी महीनों में सावन सर्वश्रेष्ठ मास

सावन को सभी माहों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि यह भगवान शिव को समर्पित है। इस मास में शिव अपनी तपस्या पूर्ण कर पृथ्वी पर विचरण करते हैं और भक्तों पर विशेष कृपा करते हैं। यह मास शिव भक्ति, प्रकृति के सौंदर्य और आध्यात्मिक उन्नति का अद्भुत संगम है। इस दौरान शिव को जल चढ़ाने से न केवल पापों का नाश होता है, बल्कि मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त होता है।

यजुर्वेद में कहा गया है:

“नमस्ते रुद्र मन्यव उतो त इषवे नमः।”

अर्थात्: “हे रुद्र (शिव), आपके क्रोध को नमस्कार है और आपके बाण को भी नमस्कार है।”

पद्म पुराण के अनुसार, सावन मास में भगवान शिव का निवास पृथ्वी पर रहता है और वे अपने भक्तों पर विशेष कृपा करते हैं:

“श्रावणे मासि भगवान् शङ्करः सकलम् जगत्।
पाति नित्यं प्रयत्नेन तस्माच्छ्रावणमुत्तमम्॥”

अर्थात्: “श्रावण मास में भगवान शंकर संपूर्ण जगत का नित्य प्रयत्नपूर्वक पालन करते हैं, इसलिए श्रावण उत्तम है।”

सावन का महीना और इस वर्ष के 4 सोमवारी व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के प्रति हमारी अटूट श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक हैं। यह माह हमें आत्मचिंतन, शुद्धिकरण और आध्यात्मिक विकास का अवसर प्रदान करता है। इस दौरान रखे गए व्रत और की गई पूजा-अर्चना से न केवल लौकिक सुखों की प्राप्ति होती है, बल्कि आंतरिक शांति और मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त होता है। सावन माह में पूरी श्रद्धा और नियमों के साथ शिव-शक्ति की आराधना करें और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को सफल बनाएं।

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