बिहार के गया शहर में फल्गु नदी के किनारे स्थित विष्णुपद मंदिर, हिंदू धर्म के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। यह मंदिर भगवान विष्णु के चरणचिह्न पर बनाया गया है, जो यहाँ आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। श्राद्ध पक्ष के दौरान, पूरे देश से श्रद्धालु यहाँ अपने पूर्वजों को ‘पिंडदान’ करने आते हैं, ताकि उनकी आत्मा को मोक्ष मिल सके।

गयासुर की कथा और मंदिर का महत्व

इस मंदिर की स्थापना के पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसका संबंध गयासुर नामक राक्षस से है। कहा जाता है कि गयासुर ने कठोर तपस्या से वरदान प्राप्त कर देवताओं और मनुष्यों को परेशान करना शुरू कर दिया। जब उसके अत्याचार बहुत बढ़ गए, तो देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। विष्णु ने अपनी गदा से गयासुर का वध किया और उसे मोक्ष प्रदान करने के लिए स्वर्ग से लाई गई एक धर्मशिला को उसके सिर पर रखकर अपने पैरों से दबाया।

इसी धर्मशिला पर भगवान विष्णु के चरणचिह्न अंकित हो गए, जो आज भी मंदिर के केंद्र में मौजूद हैं। मोक्ष पाने से पहले, गयासुर ने विष्णु से वरदान माँगा कि यह स्थान ‘गया क्षेत्र’ के नाम से जाना जाए और यहाँ पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिले। यही कारण है कि यह स्थान पितरों की मुक्ति के लिए इतना महत्वपूर्ण माना जाता है।

सीता कुंड और पिंडदान की परंपरा

विष्णुपद मंदिर के ठीक सामने फल्गु नदी के तट पर सीता कुंड है, जिसका भी अपना एक विशेष महत्व है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता सीता ने इसी स्थान पर महाराज दशरथ का पिंडदान किया था। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने पिंडदान के लिए बालू और फल-गुण से भरे जल का उपयोग किया था।

गया में पिंडदान एक विशेष प्रक्रिया के तहत होता है, जिसमें अलग-अलग वेदियां और अलग-अलग संख्या में पिंडों का दान शामिल है।

  • पिंडों की संख्या: सामान्यतः, तीन पीढ़ियों (पिता, दादा, परदादा) के लिए तीन पिंड दान किए जाते हैं। कुछ विशेष मामलों में पाँच पीढ़ियों के लिए पाँच पिंड या 16 पिंडों का भी विधान है, खासकर विष्णुपद मंदिर में।
  • पिंड का अर्थ: पिंड अक्सर चावल या जौ के आटे से बनाए जाते हैं, जिन्हें तिल, शहद और पानी मिलाकर गोल आकार दिया जाता है। यह अनुष्ठान पूर्वजों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए किया जाता है।

प्रमुख वेदियां और दर्शनीय स्थल

गया में कभी 360 वेदियां हुआ करती थीं, लेकिन अब इनकी संख्या 54 रह गई है। पिंडदान के लिए तीन प्रमुख स्थान हैं: फल्गु नदी, विष्णुपद मंदिर और अक्षय वट वृक्ष। विष्णुपद मंदिर परिसर में 16 प्रमुख वेदियां भी हैं, जहाँ पिंडदान करने से पूर्वजों को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। इन वेदियों के नाम हैं: कार्तिक पद, दक्षिणाग्नि पद, गार्हपत्याग्नि पद, आवहनीयाग्नि पद, संध्याग्नि पद, आवसंंध्याग्नि पद, सूर्य पद, चंद्र पद, गणेश पद, उधीची पद, कण्व पद, मातंग पद, कौच पद, इंद्र पद, अगस्त्य पद और कश्यप पद।

विष्णुपद मंदिर के अलावा, यहाँ पास में ही कई अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल भी हैं, जिनमें मंगला गौरी मंदिर, दुखहरनी माता मंदिर, ब्रह्मयोनि पर्वत और अति प्राचीन सूर्या मंदिर शामिल हैं। इन स्थानों पर दर्शन मात्र से पूर्वजों की आत्मा को शांति और वंश की तरक्की का मार्ग प्रशस्त होता है। विष्णुपद मंदिर वास्तव में श्रद्धा, पुरातत्व और आध्यात्मिक शांति का एक अद्भुत संगम है।

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